शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2015

आज का विचार :जीवन में मात्रा होनी चाहिए ,ज्ञान मात्रा लाता है

आज का विचार :जीवन में मात्रा होनी चाहिए ,ज्ञान मात्रा लाता है 

भारतीय जीवन धारा में ,दर्शन में भोग (काम )वर्जित नहीं है। बस धर्म सम्मत हो और हाँ उसकी मात्रा निर्धारित हो। अनियंत्रित भोग बिना मात्रक का भोग रोग बन जाता है। मात्रा जुड़ जाए भोग  के साथ तो यही योग बन जाता है। 

योग माने मात्रा। योग का मतलब मात्रा होता है। गृहस्थ भी योग है। योग माने कार्यकुशलता। उन्नत कोटि का योग कार्य की कुशलता है।
योग : कर्मषु कौशलम। 
 ज्ञान हमारे जीवन में मात्रज्ञता लाता है। दिन भर में हमें २१६०७ साँसें मिली हैं। कैसे लेनी हैं ये साँसें दौड़ते हाँफते आधी अधूरी या संतुलित। जो करना हो विचार पूर्वक हो कितना करना है कब करना है। कैसे करना है इसका ध्यान रहे। बड़े वही हैं जिनके जीवन में मात्रा है संतुलन है। अति नहीं है। संतुलन है।

कब सोना है ,कब उठना है कब खाना है स्वाध्याय करना ,सैर करना है ,संध्या वंदन करना है यह सब तय हो। 

आज घरों में वह नेहबन्धन नहीं रहा। लोग अपने लिए जीने लगें हैं। बस एक काम करें -भोजन न करें ,प्रसाद ग्रहण करें ईश्वर को अर्पण करें भोज्य खाने से पहले फिर प्रसाद ग्रहण करें करके देखें।  

घर में तुलसी का पौधा (बिरवा लगाओ )सुबह उठकर तुलसी के पास जाओ। तुलसी २४/७ पीपल ,मौलिश्री ,वटवृक्ष  की तरह ऑक्सीजन ही नहीं देती प्राण तत्व भी देती है। 

जैश्रीकृष्णा !


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