मंगलवार, 15 दिसंबर 2015

मिस्टर केजर बवाल अपनी शेव बनाके साबुन दूसरों के मुंह पे फैंकते आये हैं। भ्रस्टाचार की गंगा उनके अपने सचिव के पास से निकल रही थी। जो उन्हें दिखलाई न दी। जब औरों ने देखा तो वे रस्सा लेके कूदने लगें हैं। मुंह फाड़ के मंदमति की तरह चिल्ला रहें हैं। कई सेकुलर इनकी हिमायत में निकल आये हैं। करतम सो भोगतम।

मिस्टर केजर बवाल अपनी शेव बनाके साबुन दूसरों के मुंह पे फैंकते आये हैं। भ्रस्टाचार की गंगा उनके अपने सचिव के पास से निकल रही थी

अब तक हमारे अनंत कोटि जन्म हो चुके हैं। इन जन्मों के  कुल कर्मों  का जमा जोड़  हमारे संचित कर्म कहलाते हैं। इन संचित कर्मों का एक अंश लेकर हम पैदा होते हैं। यही अंश हमारा प्रारब्ध (कर्म )कहलाता है। प्रारब्ध कर्म  भोग से  कोई बच नहीं सकता। इसके  अलावा इस जन्म में जो कर्म हम करते हैं वे हमारे  क्रियमाण कर्म हैं। इनमे से कुछ के  फल  यहीं इसी जन्म में भुगत लेते हैं। शेष आगामी कर्म  के रूप  आगे के जन्मों में भुगतते हैं।

मिस्टर केजर बवाल अपनी शेव बनाके साबुन दूसरों के मुंह पे फैंकते आये हैं। भ्रस्टाचार की गंगा उनके अपने सचिव के पास से निकल रही थी। जो उन्हें दिखलाई न दी। जब औरों ने देखा तो वे रस्सा लेके कूदने लगें हैं। मुंह फाड़ के मंदमति की तरह चिल्ला रहें हैं। कई सेकुलर इनकी हिमायत में निकल आये हैं। करतम सो भोगतम। 

                      

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