रविवार, 22 अक्तूबर 2017

कुण्डलिनी चक्रों का संरेखण (मार्गरेखा ) क्या हैं ये कुण्डलिनी चक्र ?

कुण्डलिनी चक्रों का संरेखण (मार्गरेखा )

क्या हैं ये कुण्डलिनी चक्र ?

संस्कृत भाषा में चक्र शब्द का अर्थ है चक्का या वील ये चक्र और कुछ नहीं हैं मात्र ऊर्जा बिंदु हैं मेरुदंड या रीढ़ पर कुछ ख़ास जग़हों  पर रेखांकित ,वैसे ही जैसे डीएनए की कुंडली पर सुनिश्चित स्थानों पर गुणसूत्र बैठे हैं। 

भारत धर्मी समाज में सम्मानीय स्थान प्राप्त हमारे ऋषियों मुनियों ने बतलाया था विविध वर्णी स्पेक्ट्रम के रंगों की मानिंद ऐसे सात नर्तनशील चक्र  हमारे शरीर तंत्र में मौजूद हैं।इनका यह नर्तन (spin or rotation )उसी दिशा में है जिसमें घड़ी की सुइयां घूमतीं हैं (clock waise ).हमारे शरीर का एक सशक्त स्रावी तंत्र हैं इनमें  से कई चक्र। 

यह महज़ इत्तेफाक है या कुछ और इन चक्रों  के बीच जो परस्पर अंतर है अंतराल है इंटरवल है दूरी है वह हमारी शरीर रचना के स्रावी -तंत्र केंद्रों (endocrine centers  )के बीच के अंतराल से मेल खाती  है। मैच करती  है। वैसा ही है। 

क्या है इनकी अवस्थिति और वर्ण ?
Location and their Color

यूं शरीर की ७२००० नाड़ियाँ जहां -जहां आकर मिलतीं हैं वहां -वहां ये ऊर्जा केंद्र मौजूद हैं लेकिन यहां हम उन प्रमुख सात चक्रों का ही उल्लेख कर रहें हैं जो हमारे शरीर  के केंद्रभाग  के ही गिर्द है। 
'That are located along the center of the body '.

(१ )पहला चक्र मूलाधार (the Root Chakra ):हमारे प्रजनन अंगों (गुदा और अंडकोष या फिर गुदा और योनि )के बीच बतलाया गया है। यही हमारी रीढ़ का आधार ,वक्ष बांस (cocciyx or tail bone of the back )है। यही केंद्र  है हमारे प्रजनन क्षेत्र और प्रजनन अंगों का। 

इसकी आभा रक्तिम ,रक्त वर्णी (लाल )बतलाई गई है। 

(२ )दूसरा Belly Chkra या अधिष्ठान चक्र है यह हमारे पेड़ु में स्थित है नाभि से थोड़ा नीचे उदर का यही निचला भाग है जो पहले चक्र मूलाधार और नाभि के बीच पड़ेगा। 

इसका आधार भी रीढ़ (मेरुदंड ).यह लंबर रीजन के गिर्द अवस्थित है। लंबर रीजन छाती (थोरासिक रीजन  )और सेक्रम के बीच इसकी अवस्थिती बतलाई गई है। sacrum कमर के पीछे की तिकोनी हड्डी होती है जिसे त्रिकास्थि भी कह देते हैं। 

चिकित्सा विज्ञान की भाषा में कहे तो यह L1 के गिर्द है। (लंबर रीजन मोटी भाषा में कमर का निचला हिस्सा या है यह L1 से L5 तक का क्षेत्र है। जिनका प्रोलेप्स  डिस्क से पाला पड़ा है वह जानते हैं क्या चीज़ है ये लंबर रीजन। भगवान् आप सबको बचाये रहे स्लिप या प्रोलेप्स डिस्क से। 

इस बेली -वील को नारंगी (ORANGE )बतलाया गया है। 

(३ )तीसरा चक्र Solar Plexus (स्नायु गुच्छ या सौर -जालक ,सौर -जाल )कहलाया है। 

यह स्टर्नम (छाती के बीचों -बीच की हड्डी )के बस थोड़ा सा नीचे लेकिन नाभि के ठीक ऊपर का क्षेत्र है जहां यह तीसरा चक्र मौजूद है। 

मेरुदंड पर इसकी अवस्थिति eighth thoracic vertebra है। जिसे रीढ़ का आठवाँ जोड़ भी कह सकते है। 

इस चक्र का संबंध हमारे अधिवृक्क (गुर्दों से सम्बंधित adrenal ),आमाशय (stomach )और अग्नाश्य (pancreas )से जोड़ा गया है। 

एड्रिनेलिन (इसे स्ट्रेस हॉर्मोंन भी कहा गया है )बनाने के लिए एड्रिनल ग्लेंड तथा इन्सुलिन हारमोन तैयार करने के लिए हमारी अग्नाशय  ग्रंथि सुविख्यात रहीं हैं। 

ज़ाहिर है हमारे स्रावी -तंत्र(endocrine system ) के ये चक्र चौकीदार रहे हैं जो हमारे भाव -अनुभव मनोभावों का संचालन किये रहते हैं। 

इस चक्र को  पीत वर्ण(पीला रंग ) मिला है कृष्ण के पीताम्बर सा। 

(४ )चौथा अनाहत या Heart Wheel कहा गया है।यह ब्रेस्टबोन के बीचों -बीच अवस्थित है। दोनों स्तनों के बीच इसकी अवस्थिति रहती है। कमर के पीछे इसकी अवस्थिति पहला थोरासिक वर्टिब्रा(वक्ष बांस ) है। 

इस चक्र का संबंध हमारे थाइमस (Thymus gland बाल्य ग्रंथि ),हृदय और रक्तसंचरण तंत्र से है।प्रेम यहीं  उपजता है राग- अनुराग- विराग भी। 

इसका रंग गुलाबी है। 

(५ )पांचवां Throat Chkra (कंठ चक्र ,विशुद्धि चक्र )कंठ -गढ़ा pit of throat में रहता है। इसकी अवस्थिति हमारी गर्दन के अग्रभाग में आगे की ओर  गर्दन के आधारीय भाग में रहती है। इस भाग को  होलो आफ दी कॉलर बॉन भी कहा जाता है। 

इसका सम्बन्ध थाईरॉइड ग्रंथि ,फेफड़ा (lungs )और ENT यानी ईअर -नोज़ और थ्रोट (कान -नाक -गला या कंठ  )से जोड़ा गया है। थाईरॉइड ग्रंथि का अधिक या जरूरत से कम सक्रीय रहना ही 'हाइपर' और 'हाइपो -थाइरोइड्जम 'की वजह बनता। 

हाइपर में चयअपचयन की दर के बढ़ने से भूख जल्दी -जल्दी और बहुत तेज़ लगती है व्यक्ति अधिक खाता है और फिर भी पतला होता जाता है। 

'हाइपो' में इसके विपरीत कैलोरी बर्न करने की रफ़्तार घट जाती है ,मेटाबोलिक रेट कम हो जाने से मरीज़ खाता भी कम है लेकिन फिर भी उसका वेट बढ़ जाता है। 

इस चक्र को  रंग अलॉट किया गया है -हल्का नीला (लाइट ब्ल्यू ). 

To be more precise about the Throat Chakra :


(Fifth Chakra) The Throat chakra is located in the front at the base of the neck, at the 

hollow of the collarbone, with its spiral rooted in the third cervical vertebras at the 

back, the spine at the base of the skull. This chakra corresponds to the Thyroid, 

Lungs, Ears, Nose and Throat.

(६  )छटा चक्र आज्ञा चक्र है जिसे 'थर्ड -आई- चक्र' भी कहा गया है। यह हमारी दोनों ब्रोज़ (भवों )के 

बीच

 अवस्थित है।कमर में  रीढ़ की  पहली स्रविअकल - वर्टिब्रा (ग्रीवा कशेरुक )के पास है इसकी 

अवस्थिति। 

इस चक्र का सम्बन्ध हमारे नेत्रों के अलावा पीयूष ग्रंथि (pitiuitary gland ) से भी जोड़ा गया है। 

आकार में मटर के दाने भर है ये ग्रंथि जिसे हमारे शरीर की मास्टर ग्रंथि कहा जाता है। मस्तिष्क के

 आधारीय भाग में होती है यह ग्रंथियों की भी नियामक ग्रंथि। यह खुद भी अनेक हारमोन तैयार करती 

है 

जो हमारे शरीर में चलने वाली अनेक प्रक्रियाओं को चलाये रहने में मददगार रहते हैं तथा शेष ग्रंथियों 

को भी हारमोन बनाने के 

लिए ज़रूरी उत्तेजन या उकसावा देती है। 

इसका रंग गहरा नीला या INDIGO बतलाया गया है। 

(७ )सातवां चक्र  The Crown  सब से ऊपर शीर्ष  चक्र है (सिरोपरी है )जिसकी अवस्थिति कपाल के

ऊपर सतह पर बतलाई गई है। इसे ब्रह्मरन्ध्र या सहस्रार चक्र भी कहा  गया है। 

इस ग्रंथि का संबंध Pineal gland और Pituitary gland से भी जोड़ा गया है। 
इसे पीनियल -पिंड ,एपिफीसिस -सेरीब्री या तीसरा- नेत्र भी कहा गया है। यह पृष्ठवंशी मस्तिष्क में स्थित एक लघुतर अंत :स्रावी (endocrine gland )  ग्रंथि है। 

यह सेरोटॉनिन  से पैदा मिलेटोनिन को पैदा करती है। 

यह हमारे जागने -सोने मौसमानुकूल हमसे हरकतें करने करवाने का काम  

करवाती  है। पाइन शंकु सी बित्ता भर चावल के दाने सी ,आकार की ग्रंथि है ये 

पीनियल ग्लेंड। 

हमारी खोपड़ी का एक्सरे उतारने पर यह साफ़ देखी  जा सकती है। 


पीनियल ग्लेंड :It is a small endocrine gland in the brain; situated 

beneath the back part of the corpus callosum; secretes 

melatonin

सातवें क्राउन चक्र या सहस्रार चक्र का रंग पपल या 

जामुनी (PURPLE)बतलाया गया है।बैंगनी भी कह देते हैं इस रंग को बैंजनी 

भी। 

विशेष :कुण्डलिनी शब्द के भौतिक और पारभौतिक मतलब निकाले जा सकते हैं। /कुंड' धातु (root word )से बना है यह शब्द 'कुण्डलिनी'। इस 'धातु' का शब्दिक अर्थ निकलता है 'बेसिन' या 'सोर्स'। 

इस दृष्टिकोण से सोचें तो कुण्डलिनी पृथ्वी के आदिम (पृथ्वी के भी निर्माण से पूर्व का कच्चा माल )तत्वों का मिश्र है।कुण्डलिनी देवी को आरध्या समझा गया है। ये आपको गुणात्मक रूप से ऊर्ध्वगमन भी करा सकती है अधोगमन भी याने गर्त में भी गिरा सकती है। यौन शक्ति की देवी है 'कुण्डलिनी'।यही सृष्टि का संचालन किये है। 

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